मैंने एकबार सुबह आँख खुलनेसे पहले ख्वाबसे कहा -
"अगर आ रहे हो तुम, तो कुछ देर और सो लेता हू"
ख्वाब ने कहा -
"देख लो तुम्हारी मर्जी।
मैं आ तो जाऊँगा मगर भा जाऊं ये बोल नहीं सकता।
हो सकता है मैं तुम्हे ले जाऊं ऊँचे आसमान में चाँद पर या फिर समंदर की गहराईमे
या छोड़ दू वीरानेमे या डुबो दू तन्हाई में
देख लो तुम्हारी मर्जी।
मैं आ तो जाऊँगा मगर ....
हो सकता है मैं छेड़ दू वही धून फिरसे जो तुम गुनगुना रहे थे दिनभर
मिला दू उससे जिसे देखा था कल साबुन की ad में टीवीपर
या फिर से उभार दू कोई याद जो दिल के कोने में थी दफ़न पड़ी
दिखा दू वो खामोशीसे मुड़ा चेहरा, जुदाई की वो घडी
देख लो तुम्हारी मर्जी।
मैं आ तो जाऊँगा मगर ....
हो सकता है मैं प्यारा लगू या न्यारा
सुहाना लगू या डरावना
ये ना मेरे बस में है न तुम्हारे
मैं आ तो जाऊँगा मगर ....
देख लो तुम्हारी मर्जी।
"
नींद नहीं आती ... आजकल आँख बड़ी जल्दी खुल जाती है ..
-- विशाल (२१/१०/२०१६)
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