Saturday, May 14, 2011

श्यामले..



तू  छोकरी नही  सुंदरी | मिश्कील  बाल चिचुंदरी ,
काळा  कडा मी फत्तरी | तू काश्मिरातील गुल-दरी !
पाताळीचा सैतान मी | अल्लाघरीची तू परी ,
तू मद्रदेशीय श्यामले | मी तो फकीर कलंदरी |
मैदान मी थरपार्करी | तू भूमी पिकाळ गुर्जरी |
अरबी समुद्रही मी जरी | तू कुद्रती रसनिर्झरी |
आषाढीचा अंधार मी | तू फाल्गुनी मधुशर्वरी |
खग्रास चंद्र मलीन मी | तू कोर ताशीव सिल्व्हरी |
बेसूर राठ 'सुनीत' मी | कविता चतुर्दश तू खरी 
'हैदोस' कर्कश मी जरी | 'अल्लाहू अकबर' तू तरी |
माजूम मी तू याकुती | मी हिंग काबुली ; तू मिरी ,
अन भांग तू चंडोल मी | गोडेल मी तू मोहरी |
मी तो पिठ्यातील बेवडा | व्हिस्कीतली तू माधुरी |
काडेचिराईत मी कडू | तू बालिका खडीसाखरी |
प्याटीस तू कटलेट मी | ओम्लेट मी तू सागुती |
कांदे-बटाटे-भात मी | मुर्गी बिर्याणी तू परी |
अक्रोड मी कंदाहरी | तू साह-यातील खर्जुरी |
इस्तंबुलीय अबीर मी | नेपाळची तू कस्तुरी |
मी घोंगडे अन लक्तरी | मख्मुल तू मऊ भर्जरी |
बेडौल वक्र त्रिकोण मी | तू लंबवर्तुळ गे परी |
तू वाढली कितीही जरी | मज वाटसी पण छोकरी |
जरी मूल हे कमरेवरी | तरी तू मला छकुल्यापरी |
गांभीर्य आणि वयस्कता | जरी ही तुझ्या मुखड्यावरी |
स्मरते मला तव सानुली | मूर्ती मनोहर पर्करी |
लव हासरी लव लाजरी | लव कावरी लव बावरी |
चीनीमातीची जणू बाहुली | मऊ शुभ्र सफेत नि पांढरी |
चल सानुले छकुले घरी | वात्सल्य गे दाटे उरी |
निर्दोष तो देशील का | पापा छुपा फिरुनी तरी ?
तू दोन इंच जरी दुरी | फर्लांग भाससी गे परी |
चल श्यामले, म्हणुनी घरी | बसू खेटुनी जवळी तरी |
घे माडगे घे गाडगे | घे गुलचमन घे वाडगे |
ताम्बूल घे आम्बील घे | घे भाकरी, घे खा परी |
किती थांबू मी ? म्हण 'होय' ना | खचली उमेद बरे उरी |
झिडकारुनी मजला परी | मत्प्रितीचा न 'खिमा' करी |

--- आचार्य अत्रे 

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