Sunday, July 31, 2016

ये ऐशट्रे पूरी भर गयी है.

जगह नहीं है और डायरी में
ये ऐशट्रे पूरी भर गयी है.
भरी हुई है जले-बुझे अधकहे ख़यालों की की राखो-बू से
ख़याल पूरी तरह से जो के जले नहीं थे
मसल दिया या दबा दिया था, बुझे नहीं वो
कुछ उनके टुर्रे पड़े हुए हैं
बस एक-दो कश ही ले के कुछ मिसरे रह गए थे!
कुछ ऐसी नज़्में जो तोड़ कर फेंक दी थीं उसमें
धुआँ न निकले
कुछ ऐसे अश’आर जो मिरे ‘ब्रांड’ के नहीं थे
वो एक ही कश में खांसकर, ऐश ट्रे में
घिस के बुझा दिए थे..
इस ऐशट्रे में,
ब्लेड से काटी रात की नब्ज़ से टपकते
सियाह क़तरे बुझे हुए हैं..
छिले हुए चाँद की त्राशें,
जो रात भर छील-छील कर फेंकता रहा हूँ
गढ़ी हुई पेंसिलों के छिलके
ख़यालों की शिद्दतों से जो टूटती रही हैं..
इस ऐशट्रे में,
हैं तीलियाँ कुछ कटे हुए नामों, नंबरों के
जलाई थें चाँद नज़्में जिन से,
धुआँ अभी तक दियासलाई से झड रहा है…
उलट-पुलट के तमाम सफ़्हों में झाँकता हूँ
कहीं कोई तुर्रा नज़्म का बच गया हो तो उसका कश लगा लूं,
तलब लगी है !
ये ऐशट्रे पूरी भर गयी है..!!
-गुलज़ार

Wednesday, July 27, 2016

शब्द

नाही नाही म्हणताना असण्याची झाली जाण
स्वप्न शब्दांचे पाहती पेंगुळले ओठ दोन

त्याची जाणीव भलती ओलसर अधरात
थरथरत्या कुपीत एक लपलेले गीत

शब्द एक अर्थ दोन एक तुझा एक माझा
भात मऊ गं चिऊचा  पिंड का गं कावळ्याचा

हरवलो तू आणि मी असण्यात नसण्यात
शब्द गीत अर्थ सारे दाट गहिऱ्या धुक्यात

कातरले पुन्हा ओठ रंग पसरे गुलाबी
साशंक मनात तरी अजूनही नाही नाही

विरघळून गेले धुके अधरी नवे स्पंदन
शब्द वेचताना नवे असण्याची झाली जाण

--- विशाल (२७.०७.२०१६ बाणेर, पुणे )


Wednesday, July 6, 2016

कोई नहीं यहांपे होश-ओ-हवासोमे, आधे सांजोमे गये और आधे नमाजोमे
दिलपे गुजरी है तो फिर दिलकी ही बोली बोलो, क्या रक्खा है चंद उधार के अल्फाजोमे

-- विशाल