Saturday, April 16, 2011

हैफ हम जिसपे की

हैफ हम जिसपे की तैयार थे मर जाने को
जीते जी हमने छुड़ाया उसी कशाने को
क्या ना था और बहाना कोई तडपाने को
आसमां क्या यही बाकी था सितम ढाने को
लाके गुरबत में जो रखा हमें तरसाने को...


फिर ना गुलशन में हमें लायेगा शैयाद कभी
याद आयेगा किसे ये दिल-ऐ-नाशाद कभी
क्यों सुनेगा तु हमारी कोई फरियाद कभी
हम भी इस बाग में थे कैद से आजाद कभी
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को...


दिल फिदा करते है क़ुर्बान जिगर करते है 
पास जो कुछ है वो माताकी नजर करते है
खाना विरान कहां देखिये घर करते है 
खुश रहो अहल-ए-वतन ,हम तो सफर करते है 
जाके आबाद करेंगे किसी वीराने को ...


हा मयस्सर हुआ राहतसे कभी मेल हमे
जानपर खेल के भाया न कोई खेल हमे 
एक दिनका भी ना मंजूर हुआ बेल हमे 
याद आयेगा अलीपूरका बहुत जेल हमे 
लोग तो भूल गये होंगे उस अफसाने को ...


अंदमान खाक तेरी क्यो ना हो दिल मे नजा 
छुके चरणोको जो पिंगळे के हुई है जीशा 
मरतबा इतना बढे तेरी भी तकदीर कहां 
आते आते जो राहे ‘बाल तिलक’ भी मेहमा 
‘मंडाले’ को ही ये एजाज मिला पाने को ...


बात तो जब है की इस बात की जीद्दे ठाने
देश के वास्ते क़ुर्बान कारे हम जाने 
लाख समझाये कोई, उसकी ना हरगीज माने 
बहते हुये खूनमे अपना ना गिरेबान साने 
नसीहा, आग लगे इस तेरे समझाने को ...


अपनी  किस्मतमे अजलसेही सितम रखा था 
रंज रखा था, मुहीम राखी थी, गम रखा था 
किसको परवाह थी और किसमे ये दम रखा था 
हमने जब वादी-ए-गुरब्बत मे कदम रखा था 
दूरतक याद-ए-वतन आयी थी समझाने को ...


हमभी आराम उठा सकते थे घरपे रह कर 
हमकोभी मा बापने पाला था, दुःख सह सह कर 
वक्त-ए-रुखसत उन्हे इतना भी ना आये कह कर 
गोदमे आंसू जो टपके कभी रुखसे बह कर 
तिफ्ल उनकोही समझ लेना जी बहलाने को ...


देश सेवा का ही बहता है लहु नस-नस में
हम तो खा बैंटे हैं चित्तोड़ के गढ़ की कसमें
सरफरोशी की अदा होती हैं यों ही रसमें
भाले-ऐ-खंजर से गले मिलाते हैं सब आपस में
बहानों, तैयार चिता में हो जल जाने को


अबतो हम दाल चुके अपने गलेमे झोली
एक होती है फकीरोकी हमेशा बोली 
खूनमे फाग रचायेगी हमारी टोली
जबसे  बंगालमे खेले है कन्हैया होली 
कोई उसदिनसे नही पुछता बरसाने को ...


अपना कुछ गम नही पर हमको खयाल आता है 
मादर-ए-हिंद पर कबतक जवाल आता है 
‘हरदयाल’ आता है  ‘युरप' (युरोप) से ना ‘लाल’ आता है 
देशके हालपे रह रह मलाल आता है 
मुन्तझीर रहते है हम खाकमे मिल जाने को ...


नौजावानो जो तबीयतमे तुम्हारी खटके 
याद कर लेना हमेभी कभी भुले भटके 
आपके जुजवे बदन होवे जुदा कटकटके 
और सदचाक हो माताका कलेजा फटके 
पर ना माथेपे शिकन आये कसम खाने को ...


देखे  कबतक ये असिरान-ए-मुसिबत छुटे 
मादर-ए-हिंदके कब भाग खुले या फुटे 
‘गांधी'  आफ्रिकाकी  बाजारोमे सडके कुटे 
और हम चैनसे दिन रात बहारे लुटे 
क्यो ना तर्जीह दे इस जीनेपे मार जाने को ...


कोई माता की ऊंमीदों पे ना ड़ाले पानी
जिन्दगी भर को हमें भेज के काला पानी
मुँह में जलाद हुए जाते हैं छले पानी
अब के खंजर का पिला करके दुआ ले पानी
भरने क्यों जाये कहीं ऊमर के पैमाने को


मयकदा किसका है ये जाम-ए-सुबु किसका है
वार किसका है जवानों ये गुलु किसका है
जो बहे कौम के खातिर वो लहु किसका है
आसमां साफ बता दे तु अदु किसका है
क्यों नये रंग बदलता है तु तड़पाने को


दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पुछो
मरने वालों से जरा लुत्फ-ए-शहादत पुछो
चश्म-ऐ-खुश्ताख से कुछ दीद की हसरत पुछो
कुश्त-ए-नाज से ठोकर की कयामत पुछो
सोज कहते हैं किसे पुछ लो परवाने को


नौजवानों यही मौका है उठो खुल खेलो
और सर पर जो बला आये खुशी से झेलो
कौंम के नाम पे सदके पे जवानी दे दो
फिर मिलेगी ना ये माता की दुआएं ले लो
देखे कौन आता है ईर्शाथ बजा लाने को


---- रामप्रसाद बिस्मिल 
हैफ - Alas!
कशाने - House
शैयाद - Hunter
नाशाद - Cheerless, Joyless
जाम-ए-सुबु - जाम से भरी सुराही
गुलु - neck
अदु - Enemy
हलावत - Relish, Deliciousness
चश्म-ऐ-खुश्ताख - audacious eyes
कुश्त-ए-नाज - one who is killed by flattery
सोज - Burning, Heat, Passion
ईर्शाथ - Order, Command

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